भारतीय राजनीति में लालू यदाव को जमीन से जुड़े नेता के तौर पर देखा जाता है। उन्होंने बिहार में नए सामाजिक बदलावों का ताना-बाना बुना और पिछड़ी जातियों और अल्पसंख्यकों को समाज के अगड़े समुदाय के सामने तनकर खड़ा होने का साहस दिया। इन्ही वजहों से वह स्वर्ण जाती के आँखों में चुभते रहें। लालू यादव के बारे में कहा जाता हैं कि पिछड़ी जातियों और अल्पसंख्यकों को ‘स्वर्ग’ तो नहीं दिया, मगर ‘स्वर’ जरूर दिया। लेकिन वह अपनी राजनितिक यात्रा में वे जातिवाद की राजनीति में भी उलझे। भ्रष्टाचार के कई आरोप भी उन पर लगे और इनमें से कुछ में उन्हें दोषी भी पाया गया। ऐसे ही कुछ मामलों में सजा सुनाए जाने के बाद वे इस समय जेल में बंद हैं।
लालू यादव का नाम ‘लालू’ कैसे पड़ा

लालू प्रसाद यादव की बड़ी बहन गंगोत्री देवी ने एक बार बताया था कि लालू प्रसाद यादव का नाम लालू कैसे पड़ा। गंगोत्री देवी ने बताया कि लालू प्रसाद यादव बचपन में बहुत गोर और गोल मटोल थे। परिवार में सबसे छोटे थे। यहीं वजह रही की लालू यादव के पिता कुंदन राय ने उनका नाम लालू रख दिया।
सीएम बनने के बाद भी चपरासी क्वार्टर में रहे
लालू प्रसाद यादव का बचपन बहुत गरीबी में बीता, पिता कुंदन राय खेतिहर मजदूर थे, लालू यादव के बड़े भाई की चपरासी में नौकरी लगी, जिसके बाद लालू यदाव अपने भाई के साथ चपरासी क्वार्टर में रहने लगे। गौरतलब हैं कि बिहार का सीएम बनने के बाद चार महीने तक चपरासी क्वार्टर में रहे।
लड़कियों के बीच थे मशहूर
लालू ने खुद ही स्वीकार है कि वह बचपन में शरारती थे, एक बार उन्होंने एक हींग बेचने वाले के झोले को कुएं में फेंक दिया था, जिसके बाद घरवालों ने उनकी शरारत से तंग आकर उनको शहर भेज दिया था। लालू यादव अपनी साफ़ छवि और अपनी बातों से सबका ध्यान आकर्षित करने की वजह से कालेज के दौर में लड़कियो के बीच काफी मशहूर थे। लड़कियां उन्हें महात्मा कहकर बुलाती थी।
जब सामना हुआ भूत से
अपने आत्मकथा गोपालगंज से रायसीना में लालू यादव ने लिखा है कि उनका बचपन बहुत ही गरीबी में बीता था। उनका परिवार इतना गरीब था कि उनके पास पहनने के लिए दो जोड़ी कपड़े और दोनों टाइम खाने को खाना भी नहीं हुआ करता था। अपने अत्मकथा में वह एक रोचक किस्सा साझा करते हुए बताते हैं कि बचपन में उनका सामना एक भूत से हो गया था और उन्हें गांव में ही पूजे जाने वाले बरम बाबा ने बचाया था। आज भी लालू जब भी अपने गांव जाते हैं तो उनके सामने सिर झुकाये आगे नहीं बढ़ते हैं।
भले ही लालू यादव अभी भले जेल में हैं पर वह बिहार के राजनीति के केन्द्र में हमेशा रहेंगे। लालू यादव के बारे में कहा जाता है कि आप उनका विरोध समर्थन कर सकते हैं, किंतु उन्हें नजरअंदाज करना आज भी मुश्किल है।
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