नई दिल्ली: तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने और किसान आंदोलन के समर्थन में मध्यप्रदेश कांग्रेस 27 फरवरी को रीवा में किसान महासम्मेलन करेगी। इसमें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ सहित वरिष्ठ नेता हिस्सा लेंगे। इसके पहले 20 फरवरी तक सभी जिलों में किसान संघर्ष पदयात्रा होगी। इसमें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव और मध्य प्रदेश के सह प्रभारी हिस्सा लेंगे।
बीजेपी की उंचें पहाड़ से चकना चूर होकर जमीन पर गिरी कांग्रेस को लगता है कि वह किसान आंदोलन के सहारे उठ खड़ी होगी। हलांकि यह तभी हो सकता है, जब बीजेपी नए कृषि क़ानून को एकदम से वापस ले लेगी। गौरतलब है कि मोदी सरकार के पिछले 6 साल के कार्यकालों को देखे तो, पहली दफा बैकफुट पर दिख रही है। शायद यह बीजेपी का कोई चाल भी तो हो सकता है, वह 2 कदम पीछे लेकर कोई लंबा छलांग भी तो लगा सकती है। ऐसे में कांग्रेस अपनी पैनी नज़रें बीजेपी की चाल और किसानों के आंदोलन पर जमाई हुई हैं।

बीजेपी पीछे क्यों नहीं हट रही-
किसानों ने सरकार के लिखित प्रस्ताव को ठुकरा दिया है। ऐसे में सवाल उठता है कि आख़िर सरकार ये क़ानून वापस लेने को तैयार क्यों नहीं हैं? क्या इसके पीछे केवल राजनीतिक वजह है या फिर कुछ कृषि क्षेत्र के अर्थशास्त्र से भी जुड़ा है। क्या जिस तरह से कनाडा और ब्रिटेन में किसानों के समर्थन की आवाज़ें आ रहीं है, उसमें कोई अंतरराष्ट्रीय एंगल भी है।
बीजेपी को सालों से कवर करने वाली वरिष्ठ पत्रकार निस्तुला हेब्बार कहती हैं, “सरकार का मानना है कि कृषि सुधार के लिए ये क़ानून ज़रूरी हैं। यही वजह है कि एनडीए ही नहीं यूपीए के कार्यकाल में इन सुधारों की बात की गई थी। शरद पवार की चिट्ठियों से ये बात ज़ाहिर भी होती है। लेकिन, किसी राजनीतिक पार्टी के पास ऐसा करने की ना तो इच्छा शक्ति थी और ना ही संसद में वो नंबर थे। बीजेपी केंद्र में 300 से ज़्यादा सीटों के साथ आई है. अगर कृषि सुधार वाले क़ानून अब लागू नहीं हुए तो कभी लागू नहीं होंगे।”
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इससे पहले केंद्र सरकार संसद में भूमि अधिग्रहण बिल लेकर आई थी। उस पर उन्हें अपने पैर पीछे खींचने पड़े थे. उस वक़्त राहुल गांधी ने संसद में केंद्र सरकार के लिए ‘सूटबूट की सरकार’ का नारा दिया था। इससे सरकार की बड़ी किरकिरी हुई थी। इन क़ानूनों को प्रधानमंत्री से लेकर कृषि मंत्री तक अलग-अलग मंचों से बहुत क्रांतिकारी और किसानों के लिए हितकारी बता चुके हैं। इतना सब कुछ होने के बाद क़ानून वापस लेना सरकार की साख पर धब्बा लगने जैसा होगा।
यहाँ एक बात और समझने वाली है कि भूमि सुधार क़ानून पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी केंद्र सरकार के साथ नहीं थी। लेकिन, इस बार आरएसएस से जुड़े किसान संगठन चाहे वो स्वदेशी जागरण मंच हो या फिर भारतीय किसान संघ इन क़ानूनों को किसान के हित में बता रहे हैं, लेकिन दो-तीन सुधार के साथ।
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आउटलुक मैग़ज़ीन की राजनीतिक संपादक भावना विज अरोड़ा कहती हैं, “मेरी बीजेपी में कई नेताओं से इस बारे में बात हुई है। सरकार इस बात को मानती है कि ये सुधार ऐतिहासिक हैं। किसानों को आने वाले दिनों में पता चलेगा कि इससे कितना बड़ा फ़ायदा हुआ है और तब यही किसान उन्हें धन्यवाद देंगे। हर रिफॉर्म के पहले ऐसे आंदोलन होते हैं। लेकिन, सरकार भी इस बार लंबी लड़ाई के लिए तैयार है।”
भावना आगे ये भी कहती हैं कि सरकार जिन संशोधनों पर राज़ी होती दिख रही है, इससे एक बात साफ़ है कि सरकार ने अपना स्टैंड पहले के मुक़ाबले काफ़ी लचीला किया है। लेकिन, भविष्य में सरकार कब तक क़ानून वापस ना लेने की माँग पर क़ायम रह पाती है, ये भी देखने वाली बात होगी।
केंद्र सरकार ने साल 2022 में किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया है। उन्हें लगता है ये क़ानून उस वादे को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
सचिन सार्थक
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