जब बिहार विधानसभा चुनावों का दौर चल रहा था। तो बिहार की मशहूर लोक गायिका नेहा सिंह राठौर द्वारा गाया सुप्रसिद्ध गीत “बिहार में का बा” काफी वायरल हो रहा था। लेकिन चुनाव ख़त्म होने के बाद जनता ने साफ तौर से बता दिया की “बिहार में त फिर से नीतीश कुमार बा”
हालाँकि उधर शपथ समारोह समाप्त हो हुआ, नीतीश कुमार मुख्यमंत्री भी बन गए लेकिन राजनीतिक गलियारों में दिन रात चर्चा चलती रही कि उन्हें बीजेपी को सत्ता की चाभी देकर एक दरियादिली दिखानी चाहिए थी।यहीं मौका था बड़ा दिल दिखाने का और यहीं मौका था अपने से कुर्सी कुमार का टैग हटाने का।मगर मासूम जनता कहाँ समझती है की राजनीति कुर्सी के लिए तो की जाती है।और हुक्मरान कहते है जब टैग कुर्सी का ही लग गया है तो बैठ के देख लेते है।

हमेशा की तरह इस बार भी नीतीश कुमार कुर्सी पर खचाक से बैठ गए है लेकिन अबकी बार कुर्सी की टाँगे कमजोर दिख रही है। अगर नीतीश कुमार खुद को चाणक्य (कई चुनावों से कम सीटें लाने के बावजूद भी सत्ता की चाभी अपनी झोली में रखते है ) समझ रहे है तो दूसरा महा चाणक्य (अमित शाह) ज्यादा दिन तक चुप बैठने से रहे यह कभी भी बड़ा चाल चल सकते है।
फ़िलहाल बंगाल चुनाव सर पर है अगर बंगाल भगवा मय हो गई तो आने वाले समय में बीजेपी का हौसला सातवें आसमान पर होगा।
फिर वह बिहार की तरफ़ चल पड़ेगी जहाँ ख़रीद-फ़रोख़्त से लेकर अपना सारा दांव-पेंच लगाने की जी तोड़ कोशिश करेगी शायद इस खेल में पुरी तरह से सफल भी हो जाए
जबकि दूसरी तरफ़ सूत्रों की माने तो बिहार की एनडीए में कुछ भी ठीक नही चल रहा है। वहीं नीतीश कुमार जबसे मुख्यमंत्री का पद ग्रहण किए है कैमरे के सामने नर्वस दिखते है और खुद को ग्लानि महसूस करते है, जैसे मुख्यमंत्री का पद बीजेपी के तरफ़ भीख में दी गई हो। शायद यहीं वजह रही होगी कि पिछले दिनों तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार को अनुकम्पा वाला मुख्यमंत्री कह दिया।
इन सारी चीज़ों को देखते हुए लगता है की नीतीश कुमार कोई बड़ा फ़ैसला लेकर सबको चकित कर दें और यह फ़ैसला इस्तीफ़े तक का भी हो सकता है।
