केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शनिवार को कहा कि जम्मू कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक का राज्य के दर्जे से कोई संबंध नहीं है और उपयुक्त समय पर जम्मू कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाएगा। लोकसभा में जम्मू कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2021 पर चर्चा का जवाब देते हुए गृह मंत्री ने कहा कि इस विधेयक में ऐसा कहीं भी नहीं लिखा है कि इससे जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा नहीं मिलेगा।
शाह ने इस दौरान कहा कि जिन्होंने धारा 370 वापस लाने के आधार पर चुनाव लड़ा था वो साफ हो गए, अब कोई भी आरोप नहीं लगा सकता, हमारे विरोधी भी यह नही कह सकते कि डीडीसी चुनाव में घपला हुआ। सबने भयमुक्त होकर मतदान किया था। जम्मू-कश्मीर में पंचायत चुनाव में 51 फीसदी मतदान हुआ था।’

द वायर के रिपोर्ट के अनुसार अनुसार, इस दौरान कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा कि जब सरकार पूर्ण राज्य बहाल करने की बात कर रही है तब जम्मू कश्मीर कैडर को एजीएमयूटी के साथ मिलाना विरोधाभासी है। इस पर शाह ने कहा कि मिजोरम, गोवा और अरुणाचल प्रदेश भी राज्य हैं और इस कैडर का हिस्सा हैं इसलिए उनका यह सुझाव सही नहीं है। 4जी इंटरनेट सुविधाएं दबाव में बहाल करने के विपक्षी सदस्यों के आरोप पर जवाब देते हुए शाह ने कहा, ‘ असदुद्दीन ओवैसी जी ने कहा कि 2जी से 4जी इंटरनेट सेवा को विदेशियों के दबाव में लागू किया गया है। उन्हें पता नहीं है कि यह यूपीए सरकार नहीं, जिसका वह समर्थन करते थे।
शाह ने कहा कि तीन परिवार के लोग ही वहां शासन करें, इसलिए अनुच्छेद 370 पर जोर दिया गया। उन्होंने कहा कि जिन्हें पीढ़ियों तक देश में शासन करने का मौका मिला, वे अपने गिरेबां में झांककर देखें, क्या आप हमसे 17 महीने का हिसाब मांगने के लायक हैं या नहीं। गृह मंत्री ने कहा कि ओवैसी अफसरों का भी हिंदू मुस्लिम में विभाजन करते हैं। क्या एक मुस्लिम अफसर हिंदू जनता की सेवा नहीं कर सकता या हिंदू अफसर मुस्लिम जनता की सेवा नहीं कर सकता? उन्होंने कहा कि अफसरों को हिंदू-मुस्लिम में बांटते हैं और खुद को धर्मनिरपेक्ष कहते हैं।
जम्मू कश्मीर में लोगों की जमीन छिन जाने के आरोपों को गलत बताते हुए शाह ने कहा कि हमने जम्मू कश्मीर में भूमि बैंक बनाया है। इससे प्रदेश के किसी व्यक्ति की जमीन नहीं जाएगी। उन्होंने कहा, ‘अतीत में विपक्षियों ने तो सरकारी जमीन अपने चट्टे-बट्टों में बांट दी थी। जबकि हमने उसका भूमि बैंक बनाया है, इसमें उद्योग लगेंगे और राज्य आत्मनिर्भरता के पथ पर बढ़ेगा।
मुफ्ती ने कहा कि केंद्र का ‘हम दो हमारे दो’ का रवैया इससे ज्यादा बुरा है। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस नेता
एक नज़र जम्मू कश्मीर के पुराने इतिहास पर
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देता था। अगर इसके इतिहास में जाएं तो साल 1947 में भारत-पाकिस्तान के विभाजन के वक्त जम्मू-कश्मीर के राजा हरि सिंह स्वतंत्र रहना चाहते थे। लेकिन बाद में उन्होंने कुछ शर्तों के साथ भारत में विलय के लिए सहमति जताई। इसके बाद भारतीय संविधान में अनुच्छेद 370 का प्रावधान किया गया जिसके तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार दिए गए।
लेकिन राज्य के लिए अलग संविधान की मांग की गई। इसके बाद साल 1951 में राज्य को संविधान सभा को अलग से बुलाने की अनुमति दी गई।
नवंबर, 1956 में राज्य के संविधान का काम पूरा हुआ और 26 जनवरी, 1957 को राज्य में विशेष संविधान लागू कर दिया गया। संविधान के अनुच्छेद 370 दरअसल केंद्र से जम्मू-कश्मीर के रिश्तों की रूपरेखा थी।
प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने पांच महीनों की बातचीत के बाद अनुच्छेद 370 को संविधान में जोड़ा गया।
अनुच्छेद 370 के प्रावधानों के अनुसार, रक्षा, विदेश नीति और संचार मामलों को छोड़कर किसी अन्य मामले से जुड़ा क़ानून बनाने और लागू करवाने के लिए केंद्र को राज्य सरकार की अनुमति चाहिए होती थे।
इसी विशेष दर्जें के कारण जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान का अनुच्छेद 356 लागू नहीं होता। इस कारण भारत के राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बरख़ास्त करने का अधिकार नहीं था । अनुच्छेद 370 के चलते, जम्मू-कश्मीर का अलग झंडा होता था। इसके साथ ही जम्मू -कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्षों का होता था।भारत के राष्ट्रपति अनुच्छेद 370 की वजह से जम्मू-कश्मीर में आर्थिक आपालकाल नहीं लगा सकते थे।
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